मियाँ चश्म-ए-जादू पे इतना घमंड
मियाँ चश्म-ए-जादू पे इतना घमंड
ख़त-ओ-ख़ाल-ओ-गेसू पे इतना घमंड
अजी सर उठा कर इधर देखना
इसी चश्म-ओ-अबरू पे इतना घमंड
नसीम-ए-गुल इस ज़ुल्फ़ में हो तो आ
न कर अपनी ख़ुशबू प इतना घमंड
शब-ए-मह में कहता है वो माह से
रकाबी से इस रू पे इतना घमंड
बस ऐ शम्अ' कर फ़िक्र अपनी ज़रा
इन्ही चार आँसू पे इतना घमंड
अकड़ता है क्या देख देख आइना
हसीं गरचे है तू पे इतना घमंड
वो कर पंजा 'इंशा' से बोले कि वाह
इसी ज़ोर-ए-बाज़ू पे इतना घमंड